Thursday 16 September 2021

                                    गंदगी कहाँ है?? 
अजीब सवाल है , और वो भी इतनी सुबह-सुबह? चलिये बुरा-भला बाद में कह लीजियेगा पहले आगे पढ़िये:-

                                    आज सुबह-सुबह कूडा उठाने वाले ने ज़ोर-ज़ोर से दो बार आवाज़ दी:- 'कूडा दे दो-कूडा दे दो'...

तभी इस कर्कस आवाज़ को सुनकर मेरी नींद खुल गई और देखा तो घर में सब सो रहे हैं! चूँकि छुट्टी का दिन था किसी को जगाने की बजाय सोचा ख़ुद ही उठकर उसे घर का कूड़ा दे देता हूँ की तभी फिर से आवाज़ गई की जल्दी दे दो भाई साहेब

                                    फिर क्या था जल्दी-जल्दी आँख मसलते हुए किचन से कूड़ेदान को उठाया और चल दिया उसे देने! ज्योंही दरवाज़ा खोला देखा की कूड़े वाले ने मेरे द्वारा कूडा देने में थोड़ा ज़्यादा समय लगाने की वजह से अपने पॉकेट से 'बीड़ी' का बंडल निकाल उसे सुलगाना शुरू कर दिया था! चूँकि बंडल में बची वो आख़री बीड़ी थी उसने बीड़ी सुलगाने के बाद बंडल के रैपर(पैकेट) को वहीं नीचे सड़क पे फेंक दिया और साथ में जलने के बाद की बची हुई मचिस की तिल्ली को भी! जब मैंने उसकी इस करतूत को देखा तो बोल बैठा :- 'दादा' पूरे मुहल्ले का कूड़ा तो आप उठाते हो और ख़ुद ही सड़क पे कूड़ा फैला रहे हो! अब इसे कौन उठायेगा? तो पहले तो थोड़ा असहज सा हो गया लेकिन शायद शर्म से झट उस बीड़ी के फेंके बंडल और जली माचिस की तिल्ली को उठा कर अपने कूड़ा उठाने वाले ठेले में डाल लिया! फिर मैंने स्थिति को समझते और संभालते हुए उससे कहा की दादा आपलोग ही 'स्वच्छ भारत' के असली कर्णधार हो तो ऐसा काम मत किया करो और दूसरों को भी ऐसा करने से रोको तो शायद गर्व से मुस्कुराता हुआ मेरी तरफ़ देख प्रणाम करता हुआ दूसरे घर की तरफ़ कूडा उठाने के लिये बढ़ गया!

                                            चाहता तो वो मेरे से तर्क-कुतर्क कर सकता था! कह सकता था की 'सड़क' की सफ़ाई MCD की ज़िम्मेदारी है और मुझे आप केवल घर का कूड़ा उठाने का पैसा देते हो! तो ज़्यादा रॉब मत झाड़ो लेकिन ग़रीब था तो समझदार निकला और चुप-चाप चला गया!

 

                                            पत्नी जी भी तब-तक जग चुकीं थीं और सुन भी रहीं थीं तो बोल उठीं पिला दिया सुबह-सुबह कूडा उठाने वाले को भी अपने Lecture का Dose! मेरे और बच्चों को तो दिन भर ऐसे ही छोटी-छोटी बातों के लिये टोकते रहते हो! उससे मन नहीं भरता क्या की अब बाहरी लोगों के साथ भी शुरू हो गये!? हम तो आपके इसी टोका-टाकी की वजह से सुधर गये लगता है अब मुहल्ला भी सुधर जाएगा

ख़ैर ये पति-पत्नी की नोक-झोंक सदैव चलने वाले क़िस्सों में से एक हैं! इसे छोड़िये!

 

उम्मीद है अब आपको ये समझ गया होगा की 'गंदगी' कहाँ है? और स्वच्छ भारत Mission कैसे दौर से गुज़र रहा है?

 

अभी भी 'समझ' नहीं आया तो अपने 'दिमाग़' पर ज़रा ज़ोर डालिये जनाब! सब समझ जायेगा!


Monday 1 July 2019

तो कब सोचें Logisticians अपनी Job में कुछ अलग करने की?


जब मार्केटिंग इग्ज़ेक्युटिवथे तनख़्वाह थी मात्र “20 हज़ाररुपए महीना और कंपनी को मुनाफ़ा कमा कर देते थे “4 लाख। मतलब तनख़्वाह से “20 गुनाज़्यादा। मैनेजर तथा मालिक सब ख़ुश रहते थे।
धीरे-धीरे तनख़्वाह बढ़ी और ओहधा भी और “10 सालोंबाद पद हो गया मैनेजर का एवं तनख़्वाह हो गई “1 लाख




दूसरी तरफ़ प्रतिस्पर्धा बढ़ी, तकनीकें बदलीं एवं जिम्मेदारियाँ भी बढ़ गईं लेकिन कमाई सिमट कर रह गई मात्र “3 लाख। मतलब केवल “3 गुना। इसी बीच, मंदी का दौर आया और कमाई जा सिमटी मात्र “2 गुनापर। 

अब सब नाख़ुश रहने लगे। कैसे मार्केटिंग वाले इस हाथी को पद-विमुक्त करें, प्लान करने लगे। ये बात मार्केटिंग वालेको भी समझ आने लगी,पर Salesmanतो "Salesmanहोते हैं। स्मार्ट, इंटेलिजेंट और एनर्जेटिक। किसी न किसी तरह कुछ वर्ष इधर-उधर करके उसी कंपनी में निकाल ही लेते है। सो निकाल लिये। बात जब ज़्यादा बिगड़ गई तो कंपनी बदल ली। लेकिन राहें वहाँ भी आसान नहीं होतीं। खिंच-तान लगा ही रहता है। बमुश्किल एक-दो-साल ही निकल पाते हैं कि पुनः कंपनी बदलनी पड़ती है और ये सिलसिला भी कुछ दिन ख़ूब चलता है। कोई कंपनी 6 महीने में ही छोड़ दी जाती है तो किसी में 3 साल तक निकाल दिए जाते हैं। 

पुरानी कंपनी को छोड़ने और नई कंपनी join करने के कारण भी भतेरे होते हैं। इस पर बाद में बात करेंगे। पर ज्यों-ज्यों एक ही तरह के कार्य में पारंगत होने के 15 वर्ष के समीप पहुँचते हैं मुश्किलें और भी बढ़ती चली जाती हैं। यहीं से उनका काम ख़राब होने लगता है और वह हताश एवं निराश रहने लगते है। ख़ास तौर पर ईमानदार “Salesman’s”

है न
यदि ऐसा है तो तो फिर ऐसा है क्यों? सोचिएगा? या उसके लिए भी फ़ुर्सत नहीं हैं? ख़ैर जो भी हो, जब इसे आप पढ़ ही रहे हैं तो ज़रा.....सोच भी लीजिए.....
क्योंकि आप केवल दो कार्यकरते हैं। 

1. बिज़्नेस जेनरेशन तथा 2. पेमेंट कलेक्शन 



लेकिन ये भूल जाते हैं कि यही दोमहत्वपूर्ण कार्यवे पैरहैं जिनपर मानव संचालित बिज़्नेस कि सारी इमारत खड़ी होती है। 

जल गया न दिमाग़ का बल्ब। ज्योति जलने कि बात इसलिए नहीं कि आप कुछ और ही समझ लेंगे।

अब सोचिए कि जब इतनी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी आपकी थी और है तो उम्र के इस पड़ाव पर आप ही सबसे ज़्यादा हताश और निराश क्यों हैं?
क्योंकि समय रहते आपने कंपनी के हित वाले तो ढेरों निर्णय लिए पर स्वयं के हित वाले निर्णय लेने भूल गए। जब कंपनी में प्रारंभिक 2-3 साल का समय बीत रहा था/ या बीत रहा है तभी स्वयं के हित वाले भी कुछ महत्वपूर्ण निर्णय ले लेने होते हैं लेकिन आपकी व्यस्तता और लापरवाही आपको ऐसा करने नहीं देती है और एक बड़ी चूक हो जाती है।हमारे साथ तो हुआ है, आपके साथ भी हुआ ही होगा? नहीं होता तो आप इसे पढ़ते ही नहीं। है न?

इस लेख को लिखने का हमारा मक़सद आपको ऐसी ग़लतियाँ करने से रोकना और सही मार्ग प्रशस्त करना है।
यदि आप चाहते हैं कि आप एक सफल मार्केटिंग प्रफ़ेशनल बनें तो हमसे अंत में दिए गए डिटेल्ज़ पर बात ज़रूर करें। हम आपकी हर संभव सहायता करेंगे।

हमें यक़ीन है कि हर लजिस्टिक्स सर्विसेज़ कि मार्केटिंगमें कार्यरत लोग इस दौर से ज़रूर गुज़रते हैं/ या गुज़र रहे हैं इसीलिए वो हमारी इस लेख को ध्यान से पढ़ेंगे, समझेंगे और हमसे संपर्क करेंगे। हमारे द्वारा फ़ोन/ईमेल के ज़रिए सुझाए गए रास्तो को अपनाएँगे। ताकि उम्र के इस पड़ाव में पहुँचने पर पछतावा न हो।